ठोकरें

ठोकरें खा कर भी ना संभले तो मुसाफ़िर का नसीब वरना पत्थरों ने तो अपना फर्ज निभा ही दिया।
ठोकर खाकर भी न संभले" का मतलब है कि कोई व्यक्ति बार-बार गलतियां करने के बाद भी उससे सीखता नहीं है और सुधार नहीं करता। यह एक प्रसिद्ध कहावत है, जिसका अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति ठोकर खाने के बाद भी खुद को नहीं संभलता तो यह उसकी किस्मत की बात है, क्योंकि रास्ते के पत्थर तो केवल अपना काम कर रहे थे, यानी ठोकर दे रहे थे।

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