खुद से हार

हम सबसे जीत के भी खुद से हार जाते हैं,
दुनिया से लड़ते हैं, पर अपने अंदर की जंग से कभी नहीं जीत पाते हैं।
हर दिन अपने ही दोस्तों से, अपने ही जज्बातों से,
अगर जीत भी जाएं तो, खुद को कभी समझ नहीं पाते।

कहीं ना कहीं, हम अपने ही सपनों से डर जाते हैं,
अपनी पहचान से हम खुद ही दूर हो जाते हैं।
अगर जीत भी हो, तो सुकून नहीं मिलता,
छुपते हुए दर्द को हम कभी सबसे नहीं कह पाते हैं।

अपनी पहचान से लड़ते, अपने खुद के हाथ से,
हर ज़ख्म को अपनी खुद की ताकत से भरते हैं।
लेकिन हर जीत के बाद, एक खालीपन का एहसास होता है,
कि सबसे जीतकर भी, अपने आप से हार जाते हैं।




Comments

Popular posts from this blog

Happiness is Like a Guest - A Simple Thought Inspired by Rabindranath Tagore’s Athithi

Be Like a Seed; When Someone Tries to Compress You, You Make Your Way Out

The Few Who Understand